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गृहमंत्री अमित शाह - नई चुनौतियां​


भारतीय जनता पार्टी की 2019 लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि मंत्रिमंडल में बड़े फेरबदल देखने को मिल सकते हैं ।देश की आशाओं और अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए बड़े व कड़े फैसले लेने होंगे। और इसकी झलक मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह से ही देखने को मिल सकती है। 30 मई 2019 को राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान कुल 58 मंत्रियों ने शपथ ली, जिसमें से 19 नए चेहरे शामिल थे। इनमें से कुछ चेहरे ऐसे भी थे जिनके मंत्री बनने की कोई संभावना नहीं थी या तो वह चर्चा में नहीं थे।

शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मंत्रिमंडल में शामिल न करने का आग्रह किया। यह काफी चौकाने वाली खबर थी। फिर शपथ ग्रहण समारोह के शुरू होने से पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को दर्शक दीर्घा में बैठी देखकर कौतूहल और बढ़ गया। वैसे तो शपथ लेने वाले मंत्रियों में से कई नामों ने लोगों को चौंकाया, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बने पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर। ऐसे कयास लगाए जाने लगे कि शायद पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा रिक्त किए गए स्थान को भरने के लिए ही एस. जयशंकर को शपथ दिलाई गई है। 

23 मई 2019 को चुनाव परिणाम आने के बाद से ही  एक नाम चर्चा का विषय बना हुआ था। वह नाम था - भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का। क्या अमित शाह सरकार का हिस्सा बनेंगे या फिर संगठन पर ही अपना ध्यान केंद्रित करेंगे? बहरहाल शपथ ग्रहण समारोह में जब अमित शाह राजनाथ सिंह के बाद शपथ ग्रहण करने पहुंचे तो स्थिति स्पष्ट हो गई। परंतु एक चर्चा का विषय अभी भी बना हुआ था, कि अमित शाह को कौन सा मंत्रालय मिलेगा? कयास तो यही लगाए जा रहे थे कि वित्त मंत्रालय या रक्षा मंत्रालय में से कोई एक हो सकता है। क्योंकि शपथ ग्रहण समारोह में राजनाथ​ सिंह प्रधानमंत्री मोदी के बगल बैठे हुए थे और वह शपथ लेने वाले पहले मंत्री थे। इसलिए गृह मंत्रालय तो राजनाथ सिंह को ही मिलना तय है। 

परंतु जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा अपने फैसलों से चौंकाया है। ठीक वैसा ही हुआ जब शपथ ग्रहण समारोह के अगले दिन मंत्रियों के विभागों का बंटवारा हुआ। अमित शाह भारत के नए गृह मंत्री होंगे। वहीं राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले की कुछ लोग सराहना कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग इसके अलग-अलग निहितार्थ निकाल रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अगर अमित शाह को रक्षा मंत्रालय का कार्यभार दिया जाता तो कश्मीर समस्या का समाधान निकल सकता था और इससे पाकिस्तान को भी कड़ा संदेश जाता।

अमित शाह बहुत सोच समझ कर, रणनीति बनाकर आगे कदम बढ़ाते हैं। और यदि कदम बढ़ा दिए तो उस काम को पूरा करते हैं। वह कड़े व बड़े फैसले ले सकते हैं। पिछले 5 सालों में जिस तरह से अमित शाह ने संगठनात्मक कौशल और एक कुशल रणनीतिकार के रूप में अपने आप को स्थापित किया है, गृहमंत्री पद के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं। दूसरी तरफ देश में कई आंतरिक समस्याएं हैं जिनका हल खोजा जाना जरूरी है। जो कि शायद पाकिस्तान और प्रायोजित आतंकवाद से ज्यादा अहम व महत्वपूर्ण हैं। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में धारा 370 को हटाने, समान नागरिक कानून लागू करने, एन.आर.सी. का दायरा बढ़ाने का वादा किया है। इसके अलावा राम मंदिर निर्माण, देशद्रोह कानून में बदलाव एवं जनसंख्या नियंत्रण भी प्रमुख मुद्दे हैं। 

मेरा ऐसा मानना है कि अगर इन मुद्दों पर देश को आगे बढ़ना है और किसी हल तक पहुंचना है, तो अमित शाह का गृहमंत्री के पद पर रहना आवश्यक है। और शायद भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी दी है। इन मुद्दों पर आगे बढ़ना आसान नहीं रहने वाला इसीलिए जरूरी था कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी सरकार में शामिल हों।

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