अव्यवस्था में व्यवस्था
हमारे देश में व्यवस्था एक जटिल प्रश्न है जिसका उत्तर मिलने के आसार निकट भविष्य में दिखाई नहीं देते। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उत्तर ढूंढने की ना तो कोई कोशिश है, ना ही इसे पाने की कोई इच्छा है। हम लोगों को इसी व्यवस्था में जीने की आदत पड़ गई है। जिम्मेदार लोग व्यवस्था बदलने के लिए कृतसंकल्पित नहीं है, वे व्यवस्था को बदलने का दिखावा मात्र करते हैं। और आम लोग रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें रुक कर कुछ सोचने समझने का समय नहीं है। हर कोई इसी व्यवस्था में अपने-अपने सरोकार सिद्ध करने में लगा हुआ है।
हमारे देश में इस समय हर तरफ हर क्षेत्र में अव्यवस्था है, चाहे आप शिक्षा को ले, स्वास्थ्य को ले, सुरक्षा को ले हमने अव्यवस्था को भी एक व्यवस्था का रूप दे दिया है। इसकी शुरुआत ऊपर से होती है। हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था ही अव्यवस्थित है। सरोकारों की राजनीति ना होकर अवसरवादिता की राजनीति होती रही है। इसने आम जनमानस के बीच वैचारिक दरार पैदा कर दी है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि व्यवस्था को बदलने का एकीकृत प्रयास नहीं हो पा रहा है। ऐसा नहीं है कि कोई प्रयास नहीं हुए या नहीं हो रहे, लेकिन यह प्रयास टुकड़ों में हैं, बंटे हुए हैं। व्यवस्था को बदलने का प्रयास करने वालों को अव्यवस्थाओं के जाल में ऐसा फंसा दिया जाता है कि अंत में वह मान लेता है, कि यही व्यवस्था है और इसको बदलने की जरूरत नहीं है। बल्कि इसी के साथ चलने में ही समझदारी है।
हजारों सालों से व्यवस्थाओं में परिवर्तन के कारण ही हम आज इस अवस्था तक पहुंच पाने में सफल हो पाए हैं, तो क्या कारण है कि आज हम अव्यवस्था को ही व्यवस्था मानकर चलने के लिए मजबूर हैं। इस व्यवस्था को बदलने की जरूरत है। इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों से लेकर आम जनमानस तक सबको एकीकृत प्रयास करने होंगे। हम मिलकर ही व्यवस्था में परिवर्तन ला सकते हैं। हमें समझना होगा कि आज हमारी जो व्यवस्था है, इसके दूरगामी परिणाम बहुत भयावह होंगे, और इसका असर हम में से हर एक पर होगा। कोई बचेगा नहीं। हमें रुक कर थोड़ा सोचने और विचार करने की जरूरत है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं, और आने वाली पीढ़ियों को क्या भविष्य देकर जाएंगे।
अलग-अलग क्षेत्रों में हुई क्रांतियों की तरह ही व्यवस्था परिवर्तन के लिए भी क्रांति की जरूरत है। हमें आगे आकर अव्यवस्थाओं से लड़ने की हिम्मत जुटानी होगी, विरोध करना होगा, एक वैचारिक विकास पैदा करना होगा, तभी हम अपना आज और कल सुरक्षित कर सकते हैं।
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