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भारतीय राष्ट्रवाद

भारत में 2019 आम चुनाव में राष्ट्रवाद शायद सबसे प्रचलित शब्द है। परंतु राष्ट्रवाद वास्तव में है क्या, इसके बारे में लोगों के अलग-अलग विचार और उससे जुड़ी धारणाएं हैं। हम ऐसा भी कह सकते हैं कि लोगों ने अपनी अपनी सुविधानुसार राष्ट्रवाद की भिन्न भिन्न परिभाषाएं विकसित कर ली हैं एवं उसी में राष्ट्रवाद को संकुचित कर दिया गया है।

लेकिन वास्तव में राष्ट्रवाद किसी एक परिभाषा, विचार, धारणा या मान्यता से कहीं ज्यादा गूढ़ एवं विस्तृत है। हम राष्ट्रवाद को राष्ट्र की सीमाओं और उसके संविधान से प्रेम के रूप में परिभाषित कर सकते हैं, अपनी पहचान एवं आम जनमानस के आपसी समन्वय और प्यार के रूप में परिभाषित कर सकते हैं, अपनी सांस्कृतिक धरोहर और अपने इतिहास से प्रेम के रूप में परिभाषित कर सकते हैं, राष्ट्र की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा के प्रति जागरूक रहने के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। अत: राष्ट्रवाद को सीमाओं में बांधना अथवा धारणाओं से जोड़कर देखना एक मूर्खतापूर्ण विचार है।

भारत में अंग्रेजों के शासनकाल में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। इस विकास में सर्वप्रथम विशिष्ट बौद्धिक वर्ग का महत्वपूर्ण योगदान था। शिक्षा के विकास एवं पाश्चात्य देशों के इतिहास के अध्ययन से राष्ट्रवाद की भावना को बल मिला और नई पीढ़ी को राष्ट्रीयता का झंडा उठाने के लिए प्रेरित किया। और इसी के साथ शुरू हुआ भारतीय राष्ट्रवाद को झुठलाने का प्रयास। बुद्धिजीवियों एवं इतिहासकारों के एक वर्ग ने भारत की भौगोलिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक विभिन्नताओं के आधार पर "भारत एक राष्ट्र" के विचार को ही खारिज कर दिया। यह प्रयास आज भी जारी है। इन्हीं बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों के तर्कों का इस्तेमाल करके अपने निजी स्वार्थों​ और हितों को साधने के लिए कुछ मुट्ठी भर लोग आज हम लोगों के मन में राष्ट्रवाद से जुड़े तथ्यहीन विचार डाल रहे हैं। और पूरे देश में ऐसा माहौल बना दिए हैं, जिसमें राष्ट्रवाद एक अपराध का बोध कराने लगा है।

भारतीय राष्ट्रवाद के इतिहास पर गौर करें तो हम पाएंगे कि भारतीय राष्ट्रवाद ने कभी किसी का अहित नहीं किया और ना ही इसका सहारा लेकर कभी भारत ने अपने विचारों और मान्यताओं को किसी पर थोपा। भारतीय समाज हमेशा से सर्वधर्म समभाव का प्रतीक रहा, समावेशी विचारधारा का हमेशा समर्थन किया, मानवता के मूल्यों​ के प्रति सजग रहा और संपूर्ण विश्व को एक परिवार माना। यूरोपीय राष्ट्रवाद की तरह भारत में स्वदेश को ही श्रेष्ठ और शेष देशों को असभ्य मानने का अहंकार नहीं है।

भारत में राष्ट्रवाद के विचार का मूल केंद्र भारत के लोग और उनकी संस्कृति है। भारतीय राष्ट्रवाद में पूरा विश्व एक परिवार है। विश्व परिवार की समग्र उन्नति भारतीय राष्ट्रवाद का प्राचीन उद्देश्य है। कुछ विचारों से असहमति की बात अलग है, परंतु राष्ट्रवाद को ही झुठलाना और अपशब्द कहना स्वयं को ही गाली देने जैसा है।

राष्ट्रवाद और देशभक्ति

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